विभाजन विभीषिका दिवस(14 अगस्त) तथा स्वतंत्रता का धुंधला पक्ष

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भारत से शताब्दियों से जकड़ी हुई परतंत्रता की बेड़ियां 1947 में एक लंबे स्वतंत्रता संग्राम के बाद टूट गईं । देश जन-जन की आशाओं व आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में बढ़ चला, लेकिन देश को स्वतंत्रता के साथ ही साथ विभाजन की विभीषिका भी झेलनी पड़ी। मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग ने लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया, यह विस्थापन कोई सामान्य नहीं था। हजारों-हजार लोगों का जनसंहार हुआ, महिलाओं के साथ जघन्यतम अपराध हुए- उस दौर में भारतीय उपमहाद्वीप में मानवता त्राहिमाम कर उठी। स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के विरुद्ध देश एकजुट होकर लड़ा था, उस दौर में किसी ने इस तरह के विभाजन के बारे में सोचा भी नहीं होगा। लेकिन अंग्रेजों की शातिराना कोशिशों तथा मुस्लिम ‌लीग के सांप्रदायिक एजेंडे ने आधुनिक काल में मनुष्यता पर विभाजन द्वारा बड़ा संकट खड़ा किया। सन् 1905 में बंगाल के धर्म आधारित विभाजन के बाद से ही विभाजन की कुत्सित रूपरेखा बनना शुरू हो गई थी, विभिन्न इतिहासकारों ने अंग्रेजों के इस कदम को भारत विभाजन के बीज के रूप में देखा है। वहीं विभाजन के जिम्मेदारों पर बात करते हुए समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने अपनी किताब 'गिल्टी मेन ऑफ़ पार्टिशन' में लिखा है कि कई बड़े कांग्रेसी नेता जिनमें नेहरू भी शामिल थे वे सत्ता के भूखे थे जिनकी वजह से बँटवारा हुआ। विभाजन की विभीषिका ने जिन लोगों को असमय मृत्यु की ओर ढकेल दिया, जिन परिवारों के साथ अमानवीय ज्यादतियां हुईं - क्या देश को वर्तमान आधुनिक लोकतांत्रिक देश बनाने तथा स्वतंत्रता दिलाने में उनका योगदान था? यदि हां, तो उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अगस्त के दिन को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की। नरेन्द्र मोदी जी ने यह घोषणा करते हुए यह कहा “देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। आज़ादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का तय होना ऐसे लोगों को हर भारतवासी की तरफ़ से आदरपूर्वक श्रद्धांजलि है। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को ख़त्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मज़बूत होंगी।"

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देश जब स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो विभाजन के कारण अपने प्राण खोने वाले नागरिकों को ससम्मान श्रद्धांजलि अर्पित करना, निश्चित ही स्वागत योग्य है। देश में 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के माध्यम से विभाजन की मानवीय त्रासदी को पुनः रेखांकित किया जा रहा है, इस पुनः रेखांकन को देश के बाहर और बहुत ही सीमित संख्या में देश के अंदर गैर-जरूरी माना जा रहा है। यह वही वर्ग है जो विभाजन के जिम्मेदारों की गलतियों को, लाखों लोगों की हत्याओं के सच को धुंधला कर छिपाता आया है। जाहिर तौर पर भारत विभाजन के दौरान जिस तरह की अमानवीय स्थितियां बनी उसकी कल्पना भी किसी ने उस समय नहीं की थी। 4 जून 1947 को भारत में अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा संबोधित पत्रकार सम्मेलन में जनसंख्या स्थानांतरण के प्रश्न पर दिए गए उत्तर से उपर्युक्त बात और भी स्पष्ट हो जाती है। जनसंख्या स्थानांतरण पर माउंटबेटन ने कहा," व्यक्तिगत रूप से मैं कोई दिक्कत नहीं देखता, स्थानांतरण के कुछ उपाय स्वाभाविक रूप से आएंगे...लोग अपने आप को स्थानांतरित कर लेंगे।..." (द ट्रिब्यून,5 जून 1947) जाहिर है कि माउंटबेटन को कल्पना भी नहीं थी कि विभाजन के दौरान कैसी स्थितियां उत्पन्न होंगी, उनका उपर्युक्त बयान भारत विभाजन की त्रासदी के यथार्थ से कोसों दूर था।

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करोड़ों लोग विभाजन के बाद ऐसी स्थिति में ढकेल दिए गए जिसके बारे में जान‌ आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मीलों तक पैदल चलते हुए बाढ़, तेज धूप तथा दंगों को झेलते हुए लोग अपनी मंजिल तक पहुंचे। कुछ लोग रास्ते में ही दंगों, अत्यधिक थकावट तथा भोजन की कमी आदि से काल कवलित हो गए । विभाजन के बारे में पंजाबी, उर्दू, हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी भाषा में लिखे साहित्य में अंत्यंत मार्मिक ढंग से उस दौर की मार्मिक अवस्था का चित्रण किया गया है। तत्कालीन अविभाजित भारत के विभिन्न हिस्सों में 1946 तथा 1947 के दौरान हुई हिंसा तथा दंगों की व्यापकता और क्रूरता ने मानवता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया है, उसका उत्तर आजतक नहीं मिला। विभाजन के दौरान हिंसा की सनक न केवल किसी का जीवन ले लेने की थी बल्कि दूसरे धर्म की सांस्कृतिक और भौतिक उपस्थिति को मिटा देने तक की भी थी। शताब्दियों तक विभिन्न धर्म के लोग देश के अलग-अलग क्षेत्रों में सह-अस्तित्व में जीवन यापन करते थे, लेकिन धीरे-धीरे फैले सांप्रदायिकता के विष ने सदियों की सह-अस्तित्व की भावना को खत्म कर एक-दूसरे के रक्त का प्यासा बना दिया। रेडक्लिफ के सीमा विभाजन के खतरनाक सिद्धांत ने जो जटिलताएं और विषमताएं भारत विभाजन से उत्पन्न की वह‌ कभी भुलाई न जा सकेंगी।

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विभाजन के बाद जो हिंदू, सिख भारत आए उन्हें अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन इन्हीं आर्थिक, भाषाई, भौगौलिक तथा सामाजिक विषमताओं की सीमा को लांघ अपनी मेहनत के बलबूते ये नागरिक एक आधुनिक लोकतंत्र के व्यवहारिक रूप में लागू होने की दिशा में अन्य भारतीयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पड़े और इस वर्ष देश जब 76 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है तब विभाजन की ज्वालामुखी को मात देकर आए परिवार की पीढ़ियां बहुविविध भारतीय समाज में रचबस कर बेहतर कर रही हैं । पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक रह गए थे, उनके साथ बाद के वर्षों में हुई ज्यादतियां किसी से छिपी नहीं हैं। आज भी पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में बहुत कम संख्या में बचे हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादतियों की अमानवीयता जारी है- विभाजन का दंश जिन्हें सबसे ज्यादा झेलना पड़ा‌ वह हैं महिलाएं। लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्याएं तथा उन्हें दास बनाने के, न भुला सकने वाले जघन्य अपराध हुए हैं। मनुष्यता के विरुद्ध हुई इस जघन्यतम विभीषिका में नृशंसता की भेंट चढ़ गए लोगों को स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में सरकार तथा आम जनमानस द्वारा याद करना निश्चित ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। बीते 14 अगस्त को देशभर में विभिन्न स्थानों में 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के माध्यम से उन‌ लाखों लोगों को श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया जो भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे नृशंसतम अपराध की भेंट चढ़ गए।

 

(यह लेख श्री आशुतोष सिंह, शोध छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 14 अगस्त 2022 को लिखा गया था)